भक्ति आन्दोलन (Bhakti movement) > छठी शताब्दी में भक्ति आन्दोलन का शुरुआत तमिल क्षेत्र से हुई जो कर्नाटक और महाराष्ट्र में फैल गई । > भक्ति आन्दोलन का विकास बारह अलवार वैष्णव संतों और तिरसठ नयनार शैव संतों ने किया शैव नयनार और वैष्णव अलवार जैनियों और बौद्धों के अपरिग्रह को अस्वीकार का ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को ही मुक्ति का मार्ग बताते थे । > शैव संत अप्पार ने पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को शैवधर्म स्वीकार करवाया। > भक्ति कवि-संतों को संत कहा जाता था और उनके दो समूह थे।प्रथम समूह वैष्णव संत थे जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय हुए। वे भगवान विठोबा के भक्त थे विठोबा पंथ के संत और उनके अनुयायी वरकरी या तीर्थयात्री-पंथ कहलाते थे, क्योंकि हर वर्ष पंढरपुर की तीर्थयात्रा पर जाते थे। दूसरा समूह पंजाब एवं राजस्थान के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में सक्रिय था और इसकी निरगुण भक्ति (हर विशेषता से परे भगवान की भक्ति) में आस्था थी। > भक्ति आन्दोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में रामानन्द के द्वारा लाया गया। > बंगाल में कृष्ण भक्ति की प्रारंभिक प्रतिपादकों में विद्यापति ठाकुर और चंडीदास थे