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History of India, Ancient India, भारत का इतिहास , प्राचीन भारत,



भारत का इतिहास
    उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है, जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में भारतवर्ष' अर्थात् 'भरतों का देश' तथा यहाँ के निवासियों को भारती अर्थात्भ रत की संतान कहा गया है। भरत एक प्राचीन कबीले का नाम था। प्राचीन भारतीय अपने देश को जम्बूद्वीप अर्थात् जम्बू (जामुन) वृक्षों का द्वीप कहते थे। प्राचीन ईरानी इसे सिन्धु नदी के नाम से जोड़ते थे, जिसे वे सिन्धु न कहकर हिन्दू कहते थे यही नाम फिर पूरे पश्चिम में फैल गया और पूरे देश को इसी एक नदी के नाम से जाना जाने लगा। यूनानी इसे "इंदे" और अरब इसे हिन्द कहते थे मध्यकाल में इस देश को हिन्दुस्तान कहा जाने लगा यह शब्द भी फारसी शब्द
"हिन्दू" से बना है। यूनानी भाषा के "इंदे" के आधार पर अंग्रेज इसे "इंडिया कहने लगे।
    विध्य की पर्वत-शृंखला देश को उत्तर और दक्षिण, दो भागों में बाँटती है। उत्तर में इंडो यूरोपीय परिवार की भाषाएँ बोलने वालों की और दक्षिण में द्रविड़ परिवार की भाषाएँ बोलने वालों का बहुमत है।

नोट : भारत की जनसंख्या का निर्माण जिन प्रमुख नस्लों के लोगों के मिश्रण से हुआ है, वे इस प्रकार हैं-प्रोटो-आस्ट्रेलायड, पैलियो मेडिटेरेनियन, काकेशायड, निग्रोयड और मंगोलायड।
    भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में बॉटा गया है-प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारत।

नोट : सबसे पहले इतिहास को तीन भागों में बाँटने का श्रेय जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ सेलियरस  (Christoph Cellarius 1638 - 1707 AD)) को है।

प्राचीन भारत
1. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार
श्रोतों से प्राप्त होती है-
1. धर्मग्रंथ
 2. ऐतिहासिक ग्रंथ 
3. विदेशियों के का विवरण व
4. पुरातत्व-संबंधी साक्ष्य

    धर्मग्रंच एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी
 भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद बसुदधैव कुटुम्बकम्  उपदेश देता है। भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपीरूपय मानती है। वेद चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। इन चार वेदों को संहिता कहा जाता है।

ऋग्वेद
* ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ॠग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित) एवं 10,462 ऋचाएँ हैं। इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतू कहते हैं। इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली, इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे  जानकारी मिलती है 
* विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
* इसके 8वें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है।
* चातुष्वण्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुक्र) आदि  पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए 
*ऋग्वेद  के कई परिचछेदों में प्रयुक्त अधन्य शब्द का संबंध गाय से है।

नोट : धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दापित्वों, कर्तव्यों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है।

ईसा पूर्व एवं ईसवी
वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर/जूलियन
कैलेंडर) ईसाई धर्मगुरु ईसा मसीह के जन्म-वर्ष (कल्पित) पर आधारित है। ईसा मसीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व (B.C-Befoe the birth of Jesus Christ) कहा जाता है ईसा पूर्व में वर्षों की गिनती उल्टी दिशा में होती है, जिसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ। यानी ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म एवं 483 वर्ष पूर्व मूत्यु हुई।
    ईसा मसीह की जन्म-तिथि से आरंभ हुआ सन्, ईसवी सन् कहलाता है, इसके लिए संकषेप में ई. लिखा जाता है। ई. को लैटिन भाषा के शब्द A.D. में भी लिखा जाता है।A.D. यानी Anno Domini जिसका Snfers ord - In the year of lord (Jesus Christ)I

* यामनावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत ऋग्वेद है।
* ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गयी है।

नोट: प्राचीन इतिहास के साधन के सूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ प्राह्मण का स्थान है।

यजुर्वेद
* सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा दलि के समय अनुपालन के लिए
नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठकर्ता को
अध्वर्यु कहते हैं।
* यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है।
*  इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है। यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।

सामवेद
* 'साम' का शाब्दिक अर्थ है गान इस वेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओं (मन्त्रो) का संकलन है । इसके पाठकर्ता को उद्रातृ कहते हैं। इसका संकलन ऋग्वेद पर आधारित है।
* इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
नोट : यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता ।

अथर्ववेद
* अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद पुराण संबंधित बंश में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य है। इसके कुछ मंत्र मत्स्य पुराण आन्ध्र सातवाहन ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर वायु पुराण गुप्त वंश हैं। अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निन्दा करता है।
* ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्थवेद का महत्व इस यात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है।
*  पृथिवीसूक्त अदर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है। इसमें मान जीवन के सभी पक्षों-गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गी का गाहन (खोज), रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियों, शाप, वशीकरण, प्रायश्चित, मातृभूमि महात्मय आदि का विवरण दिया गया है कुछ मंत्रों में जादू-टोने का भी वर्णन है।
* अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है।
*  इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
नोट । सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।

* वेदों को भली-भौति समझने के लिए छह वेदांगों की रचना हुई। ये हैं-शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण निरुक्त तथा छंद ।

* भारतीय ऐतिहासिक कथा ओं का सबसे अच्छा क्रमवद्ध विवरण पुराणों में मिलता है। इसके रचयिता लोमहर्थ अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। इनकी संख्या 18 है, जिनमें से केवल पाँच -मल्य, वायु, विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवतमें ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है।

नोट :  पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है।

* अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं। स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी, वे भी पुराण सुन सकते थे। पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे।
* स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमें जुआ और शराब की भाँति  स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है।
* शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनि  कहा गया है।
*  जायालोपनिषद् में चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।
* स्मृतिग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है। यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है। नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
* जातक में बुध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है।  हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ कथावस्तु  है जिसमे महात्मा बुध का जीवन चरित अनेक कथानकों का साथ वर्णित है। 
* जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास कल्पसूत्र' से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन-कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।
*  आर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) हैं। यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है इससे मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। (अनुवादक शाम शास्त्री)
* संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी (आठ तरंग) है, जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।
* अरबों की सिंध-विजय का वृत्तांत चचनामा (लेखक-अली अहमद ) में सुरक्षित है।
* अष्टाध्यायी (संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक) के लेखक पाणिनि हैं। इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
* कल्यायन की गागी-सहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, फिर भी इसमें भारत पर होने वाले पवन आक्रमण  का उलेख मिलता है।
* पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुराहित थे, इनके महाभाष्य  शुंगों के इतिहास का पता चलता है।

विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी 
A. सूनानी-रोमन लेखक
1. टेसियस यह ईरान का राज वैध था।  भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।
2.  हेरोडोटस  इसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्थी इसा पूर्व के भारत फारस  (ईरान) के संबंध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुसुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है।
3 सिकन्दर के साथ आनेवाले खेखकों में निर्याकर अनेस्क्रिटस तथा आरिस्टोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय है। 
4 मेगास्थनीज यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
5. डाइमेकस :  यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है।
6. डायोनिसिवस :  यह मिस्र नरेश टॉलभी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था।
7. टॉलमी :  इसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल  नामक पुस्तक लिखी 
৪. चिनी :  इसने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्रि  नामक पुस्तक लिखी। इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि के बारे में विवरण मिलता है।
9. परिप्लस  ऑफ द एरिथ्रियन  सी :  इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।

B. चीनी लेखक
1. फाहियान  यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समूद्ध बताया है। यह 14 वर्षों तक भारत में रहा।
2. संयुगन : यह 518 ई. में भारत आया। इसने अपने तीन वर्षों की यात्रा में बीद्ध धर्म की प्राप्तियों एकत्रित की।
हेनसौग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था।
3 व्हेनसाँसंग  629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा। भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया। वह विहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था। इसका प्रमण वृत्तांत सि-यू-की नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्षकासीन समाज, घर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है इसके अनुसार सिन्ध का राजा शुद्र था। ह्वेनसांग ने बुद्ध की प्रतिमा के साथ साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओं का भी पूजन किया था।

नोट : क्वेनसीग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलचति आचार्य शीलभद्र थे । यह विश्वविद्यालय बौद्ध दर्शन के लिए प्रसिद्ध था।
4 इत्सिंग   : यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया। इसने अपने  विवरण में नालंदा विश्वविद्याकय, विक्रमशिका विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है।

C. अरबी लेखक
1. अलबरुनी यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था अरबी में लिखी गई उसकी कृति किताब-उल हिद या तहकीक- ए हिन्द (भारत की खोज)', आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रोत है। यह एक विस्तूत ग्रंथ है जो धर्र्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों त था प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार-तील तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्ी अध्यायों में विभाजित है। इसमें राजपूत काीन समाज, धर्म, रीति रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश डाका गया है।

2 इब्बन  बतूता : इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा-वृतांत जिसे रहला कहा जाता है, 14वीं शताब्दी में भारतीय उपमहादवीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियों देता है 1333ई. में दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन  तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया।

D. अन्य लेखक
तारानाथ  यह एक तिब्यती लेखक था। इसने  कांग्युर    तंग्युर नामक ग्रथ की रधना की। इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
माकौपोलो   यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्डय देश की यात्रा पर आया था। इसका विवरण पाण्डय इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है।

पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी
*  भारतीय पुरातत्वशास्त्र का पितामह (Father of Indian Archaeology) सर एलेक्जेण्डर कनिंघम  को कहा जाता है। 
* 1400ई.पू. के अभिलेख 'बोगाज कोई (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इन्द्र और नासल्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते  हैं। 
* मध्य भारत में भागवत धर्म विकसिसत होने का प्रमाण यवन राजदूत "होलियोडोरस' के वेसनगर (विदिशा) गरुद स्तम्भ खेख से प्राप्त होता है।
*  सर्वप्रथम 'भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है।
* सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगीरा अभिलेख है। इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाधान्न सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है।
* सर्वप्रथम भारत पूर होनेवाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।
* सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त) से प्राप्त होती- है।
* सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है।
*  रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसीर अभिलेख से प्राप्त होती है।
*  कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास ( गड्ढा घर) का साक्ष्य मिला है। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं।
* प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी को साहित्य में कषारपन कहा गया है।
* सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने  का कार्य यवन शासकों ने किया।
* समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत- प्रेमी होने का प्रमाण मिळता है।
* अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं।

नोटः सवसे पहले भारत के संबंध वर्मा (मुवर्णभूमि - वर्तमान में म्यांमार ), मलाया (स्वर्णदवीप), कंबोडिया (कंबोज) और जावा (यवदीप) से स्थापित हुए।

महत्वपूर्ण अभिलेख
 अभिले शासक
 हाथीगुण्फा अभिलेख (तिथि रहित अभिलेख)
 कलिंग राज खारवेल 
 जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेखा रुद्रदामन
 नासिक अभिलेख
गौतभी बलश्री
 प्रयाग स्तम्भ लेख समुद्रगुप्त
 ऐहोल अभिलेख पुलकेशिन-II
 मन्दसीर अभिलेख
मालया नरेश यशोवर्न
 ग्वालियर अभिेख प्रतिहार नरेश भोज
 भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख स्कन्दगुप्त
 देवपाड़ा अभिलेख बंगाल शासक विजयसेन

नोट : अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।

* उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की कला प्राविड़ शैली कहलाती है दशिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों का प्रभाव पड़ा, अतः यह वेसर शैली कहलाती है।
* पंचायतन शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है एक हिन्दू मंदिर तब पंचायतन शैली का कहलाता है जथ मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से पिरा होता है। पंचायतन मंदिर के उदाहरण हैं कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो), ब्रह्मेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर), लक्ष्मण मंदिर (खजुराहों), लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर), दशावतार मंदिर (देवगढ़, उ.प्र.), गोंडेश्वर मंदिर (महाराष्ट्र)

2. प्रागैतिहासिक काल
जिस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण उद्धृत मालवा नहीं किया, उसे 'प्रागैतिहासिक काल' कहते हैं।मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है,  जिसका विवरण लिखित रूप में उपलख्ध है। आद्य ऐतिहासिक काल उस काल  को कहते हैं, जिस काल में लेखन -कला के प्रचलन के बाद उपलख्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं।
 संस्कृतिबर्तन 
 मालवा  काला तथा लाल
 बुर्जहोम धूसर
 जोखे  लाल
  द. नवपापाण  चमकीला धूसर
  पूर्वी नवपाथाण  भूरा लाल

*  ज्ञानी मानव (होमोसैपियंस) का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग  तीस चालीस  हजार वर्ष पूर्व हुआ।
* 'पूर्व पाषाण युग या पूरा-पाषाणकाल के मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था-शिकार पुरा पाषाणकाल में आदि मानव के मनोरंजन के भी साधन थे।
* आग का आविष्कार पुरा-पाषाणकाल में एवं पहिये का नव-पाषाणकाल में हुआ।
*  मनुष्य में स्थायी निवास की प्रयूत्ति नव पाषाणकाल में हुई तथा उसने सबसे पहले कुता को पालतू बनाया।
* मनुष्य ने सर्वप्रथम तांबा धातु का प्रयोग किया तथा उसके द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हाड़ी (प्राप्ति स्थल अतिरम्पक्कम) था।
* कृषि का आविष्कार नव पाषाणकाल में हुआ। प्रागैतिहासिक अन्न उत्पादक स्थल मेहरगढ़ पश्चिमी बलूचिस्तान में अवस्थित है। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूँ (पहली फसल) एवं जौ  थी लेकिन मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त अनाज चावल  था ।
* कृषि का प्रथम उदाहरण मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ है। कोल्डिहवा का संबंध चावल के प्राचीनतम साक्ष्य  से है।
* पल्लावरम् नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पुरापाषण कलाकृति की खोज हुई थी।
* भारत में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औजार स्फटिक (पत्थर) के बने थे।
* रॉबर्ट ब्रुश  फुट पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1863 ई. में भारत में पुरापाषाणकालीन औजारों की खोज की ।
* भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था, सिंधी भाषा में जिसका अर्थ है मृतकों का टीला।
*असम का श्येतभ्रु  गिबन भारत में पाया जाने वाला एक मात्र मानव कपि  है।
* इनामगावँ  ताम्रपाषण  युग की एक बड़ी बस्ती थी। इसका संबंध जोर्वे संस्कृति से है।
* भारत में शिवालक की पहाड़ी से जीवाश्म का प्रमाण मिला है।
* प्रागैतिहासिक काल में भीमवेटका गुफाओं के शैलचित्र के लिए प्रसिद्ध है।
*भारत में मनुष्य  संबंधी सबसे पहला प्रमाण नर्मदा घाटी  में मिला है।
नोट -  भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी रिजले प्रथम व्यक्ति थे जिन्होने प्रथम बार वैज्ञानिक आधार पर भारत की जनसंख्या का प्रजातीय विभेदीकरण किया।

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