Gupta Kingdom (गुप्त सामराज्य) |
* गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अन्त में प्रयाग के निकट कौशा्ी में हुआ।
* गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त (240-280 ई.) था। श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी पटोल्कच (2N0.320 ई) हुआ।
* गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राद् चन्द्रगुप्त प्रथम था। यह 320 ई में गद्दी पर बैठा। इसने लिछवि राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। इसने महाराजाचिराज की उपाधि धारण की।
* गुप्त संवत् (319-320 .) की शुरुआत चन्द्रगुप्त प्रथम ने की ।
* चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ, जो 335 ई. में राजगगद्दी पर बैठा। इसने आयावर्त के 9 शासकों और दशिणावर्त के 12 शासकों को पराजित किया। इन्हीं विजयों के कारण इसे भारत का नेपोतियन कहा जाता है। इसने अश्वमेम्यधकर्त्ता विक्रमक एवं परमभागवत की उपाधि धारण की। इसे कविराज भी कहा जाता है।
नोट :- परमभागवत की उपाधि धारण करने वाला प्रथम गुप्त शासक समुद्रगुप्त था
* समुद्गुप्त विष्णु का उपासक था।
* समुद्गुप्त संगीत प्रेमी था। ऐसा अनुमान उसके सिक्कों पर उसे वीणा-वादन करते हुए दिखाया जाने से लगाया गया है।
* समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था, जिसने इलाहाबाद प्रशस्ति लेख की रचना की।
* समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त ॥ हुआ, जो 380 ई. में राजगगद्दी पर बैठा ।
* चन्द्रगुप्त॥ के शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाहियान भारत आया।
* शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त-॥ ने चौदी के सिक्के चलाए।
* शाब चन्द्रगुप्त ॥ का राजकवि था । चन्द्रगुप्त ॥ के समय में पाटलिपुत्र एवं उज्जयिनी विद्या के प्रमुख केन्द्र थे ।
* अनुश्रुति के अनुसार चन्द्रगुप्त ॥ के दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी जिसे नवरत्न कहा गया है महाकवि कालिदास संभवत इनमें अग्रगण्य थे कालिदास के अतिरिक्त इनमें धन्वन्तरी , क्ष्यपणक (फलित-ञ्योतिष के विद्वान), अमरसिंह (कोशकार), शंकु (बास्तुकार), वेतालभट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर (खगोल विज्ञानी) एवं वररुचि जैसे विद्वान थे।
* चन्द्रगुप्त ॥ का सान्धिविग्रहिक सचिव वीरसेन शैव मतालंदी या जिसने शिव की पुजा के लिए उदयगिरि पहाड़ी पर एक गुफा का निर्माण करवाया था। बीरसेन व्याकरण न्यायमीमांसा एवं शब्द का प्रकाण्ड पंडित तथा एक कवि भी था।
* चन्द्रगुप्त ॥ का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त या गोविन्दगुप्त (415-454 ई. ) हुआ।
* नालंदा विश्ववि्यालय की सथापना कुमारगुप्त ने की थी।
* कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी स्कन्धगुप्त (455-467 ई.)हुआ
* स्कन्धगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुधार किया।
* स्कन्धगुप्त ने पर्णदत्त को सौराष्ट्र का गवर्नर नियुक्त किया।
* स्कन्धगुप्त के शासनकाल में ही हुण का आकरमण शुरू हो गया।
* अंतिम गुप्त शासक विष्णुगुप्त था।
* गुप्त साम्राज्य की सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई देश थी जिसके शासक को गोपना कहा जाता था एक दूसरी प्रादेशिक इकाई भुक्ति थी, जिसके शासक उपरिक कहलाते थे।
* भुक्ति के नीचे विषय नामकप्रशाशनिक इकाई होती थी, जिसके प्रमुख विषयपति कहकाते थे।
* पुलिस विभाग का मुख्य अधिकारी दंडपाशक कहलाता था।
* पुलिस विभाग के साधारण कर्मचारियों को चाट एवं भाट कहा जाता था।
* प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था।ग्राम सभा का मुखिया ग्रामिक कहलाता था एवं अन्य सदस्य महलर कहलाते थे
* ग्राम-समूहों की छोटी इकाई को पेठ कहा जाता था ।
* गुप्त शासक कुमारगुप्त के दामोदरपुर ताम्रपत्र में भूमि बिक्री सम्बन्धी अधिकारियों के क्रियाकलापों का उल्लेख है।
* आर्थिक उपयोगिता के आधार पर निम्न प्रकार की भूमि थी-
1. क्षेत्र : कृषि करने योग्य भूमि ।
2. वास्तु: वास करने योग्य भूमि।
चरागाह भूमि : पशुओं के चारा योग्य भूमि ।
4. सिल : ऐसी भूमि जो जोतने योग्य नहीं होती थी ।
5. अप्रहत : ऐसी भूमि जो जंगली होती थी।
* सिंचाई के लिए रहट या घंटी यंत्र का प्रयोग होता था ।
* श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था।
* गुप्तकाल में उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था ।
* गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ जारी कीं। इनकी स्वर्ण
* मुद्राओं को अभिलेखों में दीनार कहा गया है।
* कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता है जाति के रूप में कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन ओशनम् स्मृति में मिलता है।
* विंध्य जंगल में शबर जाति के लोग अपने देवताओं को मनुष्य का मांस चढ़ाते थे।
* पहली बार किसी के सती होने का प्रमाण 510 ई. के भानुगुप्त के एरण अभिलेख से मिलता है, जिसमें किसी भोजराज की मृत्यु पर उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है।
* गुप्तकाल में वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को गणिका कहा जाता था। वृद्ध वेश्याओं को कुट्टनी कहा जाता था।
* गुप्त सम्राट् वैष्णव धर्म के अनुयायी थे तथा उन्होंने इसे राजधर्म बनाया था। विष्णु का वाहन गरुड़ गुप्तों का राजचिह्न था।
* गुप्तकाल में वैष्णव धर्म संबंधी सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (जिला-ललितपुर) का दशावतार मंदिर है। यह बेतवा नदी के तट पर स्थित है।
* अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही शेष हैं, जिनमें गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं। इसमें गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण मरणासन्न राजकुमारी का चित्र प्रशंसनीय है। गुफा संख्या 17 के चित्र को चित्रशाला कहा गया है। इस चित्रशाला में बुद्ध केजन्म, जीवन, महाभिनिष्करमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित चित्र उद्धृत किये गये हैं।
* अजंता की गुफाएँ बौद्धधर्म की महायान शाखा से संबंधित हैं।
* गुप्तकाल में निर्मित अन्य गुफा बाघ की गुफा है, जो बाघ (जिला-धार, मध्य प्रदेश) नामक स्थान पर विंध्यपर्वत को काटकर बनायी गयी थी।
* गुप्तकाल में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र (संस्कृत) को संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ माना जाता है बाइबिल के बाद इसका स्थान दूसरा है। इसे पाँच भागों में बाँटा गया है-
1. मित्रभेद,
2. मित्रलाभ,
3. संधि विग्रह,
4. लब्ध प्रणाश,
5. अपरीक्षाकारित्व ।
* आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम एवं सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रंथ लिखे । उसने सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारण बताए। आर्यभट्ट पहला भारतीय नक्षत्र वैज्ञानिक थे जिसने घोषणा की कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
* वराहमिहिर की पुस्तक वृहत् संहिता में नक्षत्र विद्या, वनस्पतिशास्त्र, प्राकृतिक इतिहास और भौतिक भूगोल के विषयों पर चर्चा की गई है। वराहमिहिर ने पंचसिद्धांत वृहज्जाक और लघुजातक की रचना भी की।
* अ्रह्मगुप्त इस युग के महान नक्षत्र वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ थे उसने यह घोषणा करके न्यूटन के सिद्धांत की पूर्व कल्पना कर ली: "प्रकृति के एक नियम के अनुसार सभी वस्तुएँ पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।"
* गुप्तकाल काल में पलकाण्व ने पशु-चिकित्सा पर हस्त्यायुर्वेद लिखा।
* नवनीतकम् की रचना गुप्तकाल में की गई है। इस पुस्तक में नुस्खे, सूत्र और उपचार-विधियाँ दी गई हैं।
* पुराणों की वर्तमान रूप में रचना गुप्तकाल में हुई। इसमें ऐतिहासिक परम्पराओं का उल्लेख है।
* संस्कृत गुप्त राजाओं की शासकीय भाषा थी।
* गुप्तकाल में चाँदी के सिक्कों को रूप्यका कहा जाता था ।
* याज्ञवल्क्य, नारद, कात्यायन एवं बृहस्पति स्मृतियों की रचना गुप्तकाल में ही हुई।
* मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्तकाल में ही हुआ। त्रिमूर्ति की अवधारणा का विकास गुप्तकाल में ही हुआ।
* गुप्तवंश के शासकों ने मंदिरों एवं ब्राह्मणों को सबसे अधिक ग्राम अनुदान में दिया।
* गुप्तकाल लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए स्मरणीय है। भास के तेरह नाटक इसी काल के हैं। शूद्रक का लिखा नाटक मृच्छकटिकम् या माटी की खिलौनागाड़ी जिसमें निर्धन ब्राह्मण के साथ वेश्या का प्रेम वर्णित है, प्राचीन नाटकों में सर्वोत्कृष्ट माना जाता है।
* कालिदास की कृति अभिज्ञान शाकुंतलम् ( राजा दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रेम की कथा) प्रथम भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषाओं में हुआ। ऐसी दूसरी रचना है भगवतगीता।
* सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।
नोट : नगरों का क्रमिक पतन गुप्तकाल की महत्वपूर्ण विशेषता थी ।
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