* मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई. पू. में हुआ था। जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सेन्ड्रोकोट्टस कहा है, जिसकी पहचान विलियम जोन्स ने चन्द्रगुप्त मौर्य से की है।
* विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल (आशय-निम्न कुल में उत्पन्न) शब्द का प्रयोग किया गया
* घनानंद को हराने में चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) ने चन्द्रगुप्त मौर्य की मदद की थी, जो बाद में चन्द्रगुप्त का प्रधानमंत्री बना। इसके द्वारा लिखित पुस्तक अर्थशास्त्र है, जिसका संबंध राजनीति से है।
* चन्द्रगुप्त मगध की राजगद्दी पर 322 ईसा पूर्व में बैठा। चन्द्रगुप्त जैनधर्म का अनुयायी था ।
* चन्द्रगुप्त ने अपना अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया ।
* चन्द्रगुप्त ने 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर को हराया।
* सेल्यूकस निकेटर ने अपनी पुत्री कार्नेलिया की शादी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी और युद्ध की संधि शर्तो के अनुसार चार प्रांत काबुल, कन्यार, हेरात एवं मकरान चन्द्रगुप्त को दिए।
* चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैनी गुरु भद्रबाहु से जैनधर्म की दीक्षा ली थी।
* मेगस्थनीज सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था , जो चन्द्रगुप्त के दरबार में रहता था।
* मेगस्थनीज द्वारा लिखी गयी पुस्तक इंडिका है। मेगस्थनीज के अनुसार सम्राट का जनता के सामने आने के अवसरों पर शोभा यात्रा के रूप में जश्न मनाया जाता है उन्हें एक सोने के पालकी में ले जाया जाता है। उनके अंगरक्षक सोने और चाँदी से अलंकृत हाथियों पर सवार रहते हैं। कुछ अंगरक्षक पेड़ों को लेकर चलते हैं।
इन पेड़ों पर प्रशिक्षित तोतों का झुण्ड रहता है जो सम्राट के सिर के चारों तरफ चक्कर लगाता रहता है राजा सामान्यतः हथियारबंद महिलाओं से घिरे होते हैं। उनके खाना खाने के पहले खास नौकर उस खाने को चखते हैं। वे लगातार दो रात एक ही कमरे में नहीं सोते थे। पाटलिपुत्र के बारे में: पाटलिपुत्र एक विशाल प्राचीर से धिरा है, जिसमें 570 बुर्ज और 64 द्वार हैं। दो और तीन मंजिल वाले घर लकड़ी और कचची ईंटो से बने है राजा का महल भी काठ का बना है जिसे पत्थर की नककाशी से अलंकृत किया गया है यह चारों तरफ से उद्यानों और चिड़ियों के लिए बने बसेरों से घिरा है।
* चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने किया है।
* प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए थे।
* चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ईसा पूर्व में श्रवणबेलगोला में उपवास द्वारा हुई।
बिन्दुसार
* चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिन्दुसार हुआ, जो 298 ईसा पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा।
* अमित्रघात के नाम से बिन्दुसार जाना जाता है। अमित्रधात का अर्थ है-शत्रु विनाशक।
* बिन्दुसार आजीवक सम्भ्रदाय का अनुयायी था।
नोट : अशोक पहले ब्रह्मण धर्म का अनुयायी था कल्हण के राजतरांगिणी से पता पलता है कि वह शैव धर्म का उपासक था। निम्रोध के प्रवचन सुनकर उराने बौद्ध धर्म को अपना लिया। वायुपुराण' में बिन्दुसार को भद्रसार (या वारिसार) कहा गया है।
* स्ट्रैबो के अनुसार सीरियन नरेश एण्टियोकस ने विन्दुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा। इसे ही मेगस्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता है।
* जैन ग्रंथों में बिन्दुसार को सिंहसेन कहा गया है।
* बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिका (सिन्धु एवं झेलम नदी के बीच ) में हुए दो विद्रोहों का वर्णन है। इस विद्रोह को दबाने के लिए बिन्दुसार ने पहले सुसीम को और बाद में अशोक को भेजा।
* ऐथीनियश के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एण्टियोकस-1 से मदिरा, सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की थी ।
* बौद्ध विद्वान् तारानाथ ने बिन्दुसार को 16 राज्यों का विजेता बताया है।
अशोक
* बिन्दुसार का उत्तराधिकारी अशोक महान हुआ जो 269 ईसा पूर्व में मगध की राजगी पर बैठा। अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था। (दिव्यावदान के अनुसार )
* राजगदी पर बैठने के समय अशोक अवन्ति का राज्यपाल था ।
* मास्की एवं गुर्जरा अभिडेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है।
* पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है।
* अशोक ने अपने अभिषेक के 8 वर्ष बाद छगभग 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया। (उल्लेख 13 वें शिलालेख में)
* प्लिनी का कथन है कि मिश्र का राजा फिलाडेल्फस (टॉलमी ने पाटलिपुत्र में डियानीसियस नाम का एक राजदूत भेजा था(अशोक के दरबार में).
* उपगुप्त नामक बौध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी ।
नोट:आजीवक सम्रदाय की स्थापना मक्खलि गोसाल ने की थी
* अशोक एक उपासक के रूप में अपने राज्याभिषेक के 10 वें वर्ष बोधगया की, 12 वें वर्ष निगालि सागर की एवं 20 वें वर्ष में लुम्बनी की यात्रा की ।
* अशोक ने आजीवकों को रहने हेतु बराबर की पहियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया, जिनका नाम कर्ज चोपार , सुदागा तथा विश्व झोपडी था। अशोक के पौत्र दशरथ ने आजीविकों को नागा्जुन गुफा प्रदान की थी।
* अशोक के 7 वें वर्ष लेख में आजीविकों का उल्लेख किया गया है तथा महामात्रों को आजीविकों के हितो का ध्यान रखने के लिए कहा गया है।
* अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। बौद्ध परंपरा और उनके लिपियों के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूपों का निर्माण किया था।
* भारत में शिलालेखों का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया।
* अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी , खरोष्ट्टी ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है।
* ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का अभिकेख अफगानिस्तान से, खरोष्ट्टी लिपि का अभिलेख उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से और शेष भारत से ब्राह्मी लिपि के अभिलेख मिले हैं।
नोट खरोष्ट्टी लिपि दायें से बायीं और लिखी जाती थी।
* अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
1. शिखालेख,
2. स्तम्भलेख तथा
3. गुहालेख ।
* अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में पद्राटी फेन्थेलर ने की थी। इनकी संख्या-14 है।
* अशोक के अभिलेख पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ई. में जेम्स प्रिसेप को हुई।
अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उनमें वर्णित विषय
पहला शिलालेख :- इसमें पशुबलि की निंदा की गयी है।
दूसरा शिलालेख :- इसमें अशोक ने मनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा -व्यवस्था का उल्लेख किया है।
तीसरा शिलालेख :- इसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि वे हर पाँचवें वर्ष के उपरान्त दौरे पर जाएँ। इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है।
चौथा शिलालेख :- इस अभिलेख में भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा की गयी है।
पांचवा शिलालेख :- इस शिलालेख में धर्म-महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है।
छठवां शिलालेख :- इसमें आत्म-नियंत्रण की शिक्षा दी गयी है।
सातवां एवं आठवा :- शिलालेख :- इनमें अशोक की तीर्थ - यात्राओं का उल्लेख किया गया है
नौवां शिलालेख :- इसमें सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है।
दसवाँ शिलालेख :- इसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचे।
ग्यारहवा शिलालेख :- इसमें धम्म की व्याख्या की गयी है।
बारहवा शिलालेख :- इसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है।
तेरहवाँ शिलालेख :- इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हृदय -परिवर्तन की बात कही गयी है। इसी में पाँच यवन राजाओं के नामों का उल्लेख है, जहाँ उसने धम्म प्रचारक भेजे।
चौदहवाँ शिलालेख :- अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया।
* अशोक के स्तम्भ-लेखों की संख्या 7 है, जो केवल ब्राह्मी लिपि में लिखी गयी है। यह छह अखग-अलग स्थानों से प्राप्त हुआ है-जो इस प्रकार है
1 प्रयाग स्तम्भ लेख - यह कोसांबी में स्थित था । इस स्तम्भ-लेख को अकबर ने इलाहाबाद के किले में स्थापित कराया।
2. दिल्ली टोपरा : यह स्तम्भ-लेख फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया।
3 दिल्ली-मेरठ : पहले मेरठ में स्थित यह स्तम्भ-लेख फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया है।
4. रामपुरवा : यह स्तम्भ-लेख चम्पारण (बिहार) में स्थापित है इसकी खोज 1872 ई. में कारलायल ने की।
5. लौरिया अरेराज: चम्पारण (बिहार) में।
6. लौरिया नन्दनगढ़:- चम्पारण (बिहार) में इस स्तम्भ पर मोर का चित्र बना है।
* कौशाम्बी अभिलेख को रानी का अभिलेख' कहा जाता है।
* अशोक का 7वाँ अभिलेख सबसे लम्बा है।
* अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ-लेख रुम्मिदेई है। इसी में लुम्बिनी में धम्म-यात्रा के दौरान अशोक द्वारा भू-राजस्व की दर घटा देने की घोषणा की गयी है।
* प्रथम पृथक् शिलालेख में यह घोषणा है कि सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं।
* अशोक का शार-ए-कुना (कंदहार) अभिलेख ग्रीक एवं आर्मेइक भाषाओं में प्राप्त हुआ है।
* साम्राज्य में मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति के पूर्व इनके चरित्र को काफी जाँचा-परखा जाता था, जिसे उपधा परीक्षण कहा जाता था।
* सम्राट् की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् होती थी जिसमें सदस्यों की संख्या 12, 16 या 20 हुआ करती थी।
* अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में तीर्थ का उल्लेख मिलता है, जिसे महामात्र भी कहा जाता था। इसकी संख्या 18 थी । अर्थशास्त्र में चर जासूस को कहा गया है।
* अशोक के समय मौर्य साम्राज्य में प्रांतों की संख्या 5 थी। प्रांतों को चक्र कहा जाता था।
* प्रांतों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहलाते थे।
* प्रांतों का विभाजन विषय में किया गया था, जो विषयप तिके अधीन होते थे।
* प्रशासन की छोटी इकाई ग्राम थी, जिसका मुखिया ग्रामीक कहलाता था।
* मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक मंडल करता था जो 6 समितियों में विभाजित था । प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
* बिक्री-कर के रूप में मूल्य का 10वाँ भाग वसूला जाता था, इसे बचाने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था।
* मेगस्थनीज के अनुसार एग्रोनोमाई मार्ग-निर्माण अधिकारी था । जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में लगभग 50,000 अश्वारोही सैनिक, 9,000 हाथी व 8,000 रथ थे।
* जस्टिन नामक यूनानी लेखक के अनुसार, चन्द्रगुप्त ने अपनी 6 लाख की फ़ौज से सारे भारत को रौंद दिया। यह बात सही भी हो सकती है और नहीं भी, लेकिन यह सही है कि चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस की गुलामी से मुक्त किया।
* युद्ध-क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करनेवाला अधिकारी नायक कहलाता था।
* सैन्य विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति होता था ।
* प्लिनी नामक यूनानी लेखक के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 6,00,000 पैदल सिपाही, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथी थे।
* मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य सेना का रख-रखाव 5 सदस्यीय, छह समितियाँ करती थीं।
* अशोक के समय जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को राजुक कहा जाता था।
* सरकारी भूमि को सीता भूमि कहा जाता था।
* बिना वर्षा के अच्छी खेती होनेवाली भूमि को अदेवमातृक कहा जाता था।
* मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित किया
है-.
दार्शनिक,
2. किसान,
3. अहीर,
4. कारीगर,
5. सैनिक,
6. निरीक्षक एवं
7. सभासद ।
* स्वतंत्र वेश्यावृत्ति को अपनाने वाली महिला रूपाजीवा कहलाती थी ।
* नंद वंश के विनाश करने में चन्द्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा पर्वतक से सहायता प्राप्त की थी।
* मौर्य शासन 137 वर्षों तक रहा। भागवत पुराण अनुसार वंश में दस राजा हुए जबकि वायु पुराण के अनुसार नौ राजा हुए।
* मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था। इसकी हत्या इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नींव डाली।
नोट : अशोकाराम विहार पाटलिपुत्र में था।
भारत का इतिहास , प्राचीन भारत
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