Pushyabhuti Dynasty or Vardhan Dynasty (पुष्यभूति वंश या वर्धन वंश) |
* गुप्त वंश के पतन के बाद जिन नये राजवंशों का उद्भव हुआ, उनमें मैत्रक, मौखरि, पुष्यभूति, परवर्ती गुप्त और गौड़ प्रमुख हैं। इन राजवंशों में पुष्यभूति वंश के शासकों ने सबसे विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
* पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति था इनकी राजधानी थानेश्वर (हरियाणा प्रांत के कुरुकषेत्र जिले में स्थित वर्तमान थानेसर स्थान) थी।
* प्रभाकरवर्द्धन इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था तथा प्रथम प्रभावशाली शासक था, जिसने परमभट्टारक और महाराजाधिराज जैसी सम्मानजनक उपाधियों धारण की।
* प्रभाकरव्द्धन की पत्नी यशोमती से दो पुत्र राज्यवर्द्धन और हर्षव्द्धन तथा एक कन्या राज्यश्री उत्पन्न हुई। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि राजा ग्रहवम्मा के साथ हुआ।
* मालवा के शासक देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया।
* राज्यव्द्धन ने देवगुप्त को मार डाला, परंतु देवगुप्त के मित्र गौड़ नरेश शशांक ने थोखा देकर राज्यवर्द्धन की हत्या कर दी।
नोट शशांक शैव धर्म का अनुयायी था। इसने बोधिवृक्ष (बोधगया) को कटया विया।
* राज्यव्द्धन की मृत्यु के बाद 606 ई. में 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्द्धन थानेश्वर की गगद्दी पर बैठा। हर्ष को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता था। इसने परमभटटारक नरेश की उपाधि धारण की थी।
* हर्ष ने शशांक को पराजित करके कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
* हर्ष और पुलकेशिन-1I के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ. जिसमें हर्ष की पराजय हुई ।
* चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्व्धन के शासनकाल में भारत आया।
नोट ह्वेनसांग को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा जाता है। वह नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने एवं बोध ग्रन्थ संग्रह करने के उद्देश्य से भारत आया था।
* हर्ष 641 ई. में अपने दूत चीन भेजे तथा 643 ई. एवं 645 ई. में दो चीनी दूत उसके दरबार में आए।
* हर्ष ने कश्मीर के शासक से बुद्ध के दंत अवशेष बलपूर्वक प्राप्त किए।
* हर्ष के पूर्वज भगवान शिव और सूर्य के अनन्य उपासक थे।
* प्रारंभ में हर्ष भी अपने कुलदेवता शिव का परम भक्त था चीनी यात्री हेनसाँग से मिलने के बाद उसने बीद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्याश्रय प्रदान किया तथा वह पूर्ण बौद्ध बन गया।
* हर्ष के समय में नालंदा महाविहार महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रधान केंद्र था।
* हर्ष के समय में प्रयाग में प्रति पाँचवें वर्ष एक समारोह आयोजित किया जाता था जिसे महामोक्षपरिषद कहा जाता था। हेनसौंग स्वयं 6 ठे समारोह में सम्मिलित हुआ।
* बाणभट्ट हर्ष के दरबारी कवि थे। उन्होंने हर्षचरित एवं कादम्बरी की रचना की।
* प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानन्द नामक तीन संस्कृत नाटक ग्रंथों की रचना हर्ष ने की थी। कहा जाता है कि धावक नामक कवि ने हर्ष से पुरस्कार लेकर उसके नाम से ये तीनों नाटक लिख दिए।
* हर्ष को भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट् कहा गया है, लेकिन वह न तो कट्टर हिन्दू था और न ही सारे देश का शासक ही।
* हर्ष के अधीनस्थ शासक महाराज अथवा महासामन्त कहे जाते थे।
* हर्ष के मंत्रीपरिषद के मंत्री को सचिव या आमात्य कहा जाता था।
* प्रशासन की सुविधा के लिए हर्ष का साम्राज्य कई प्रांतों में विभाजित था। प्रांत को भूक्ति कहा जाता था प्रत्येक भूक्ति का शासक राजस्थानीय, उपरिक अथवा राष्ट्रीय कहलाता था।
नोट : हर्यचरित में प्रान्तीय शासक के लिए 'लोकपाल' शब्द आया है।
* भूक्ति का विभाजन जिलों में हुआ था । जिले की संज्ञा थी विषय, जिसका प्रधान विषयपति होता था विषय के अन्तर्गत कई पाठक (आधुनिक तहसील ) होते थे
* पुलिस कर्मियों को चाट या भाट कहा गया है। दण्डपाशिक तथा दाण्डिक पुलिस विभाग के अधिकारी होते थे ।
* अश्व सेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर, पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत या महाबलाधिकृत कहा जाता था ।
* हर्षचरित में सिंचाई के साधन के रूप में तुलायंत्र ( जलपंप) का उल्लेख मिलता है।
* हर्ष के समय मथुरा सूती वस्त्रों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था।
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